Sunday 4 November 2018

यही समय है कविता का


यही समय है कविता का

पूंजी ने ध्वस्त
कर दिये
लोकतंत्र के
सभी स्तंभ
और आसार

प्रौपोगैढा के
नौबतखाने मे,
तूत्ती की आवाज
भर रह गया है
सच

अरसे तक
कोई झांका नहीं
काल कोठरी
के भीतर
लहू जम गया था
फर्श पर गहरा

अपने ही लहू से
कवि ने लिख दी थी
आजादी की
कविता

काल कोठरी
मे कैद से
रोज मार्निग वाक
पर निकलता था
कवि का मन

कवि की नश्वर
देह को
किया जा सकता है
कैद
अंनत मे विचरण
करता है उसका मन


कैद की अपनी
सीमाऐं है
कवि हर सीमा
के पार


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